ऐसे ठंडी दिल्ली बैठी ,
कोहरे की चादर ओढ़े
करती अपने प्रीतम,
सूरज का इंतज़ार!
जैसे ओढ़े लाल दुपट्टा,
नई नवेली दुल्हन
को हो घूँघट के पट
खुलने का इंतज़ार!
मिलना तो दोनों को ही,
अपने प्यारे प्रीतम से!
जो दे सके सकूं अपार,
सच करें सपना उनका,
उज्जवल करे उनका संसार!
प्रीतम के मिलते ही,
लालिमा लिए चेहरा,
दोनों का ऐसे खिल जाए!
जैसे भंवरे के स्पर्श से,
पुष्प को आकार मिल जाए!
ओज सा ऐसे चेहरे से दमके,
बगिया दोनों की खिल जाए,
कैसे करें दोनों इज़हार ?
दोनों को प्रीतम का इंतज़ार
बस केवल प्रीतम का इंतज़ार