हमराही

सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!

Tuesday, July 16, 2013

अलविदा तार ! अलविदा तार ! अलविदा तार


जब से हुआ है बे तार तार ओझल 
मन है मेरा कुछ बोझिल 
मुझे भी तो एक तार मिला था 
मेरा सबसे पहला और आखिरी तार 
मैंने रखा है उसे आज तक संभाल 
क्योंकि उसमें था मेरे पिता का प्यार 
जो चले गए बैकुंठ हमें छोड़ 
शायद इसीलिए मैं हूँ आत्मविभोर 
आज निकाल डाली सब पुरानी पाती 
जिसमें रखा था वोह तार 
मेरे पिता का प्यार 


यह वोही टेलीग्राम  है जो मेरे पिता जी ने मुझे बटाला [पंजाब] से भेजा था जुलाई 1987 में जोकि पिता जी के एक शिष्य पृथीपाल सिंह ने भेजा था  ,जब मेरा बी एड का परिणाम आया था क्योंकि तब में दिल्ली में थी |

अब नहीं होगा यह कभी किसी के साथ 
क्योंकि 160 वर्षीय होकर मिला है उसे विराम
जिसे कहते थे कभी हम टेलीग्राम  
जो शुरू हुई थी 1863 में 
और अंतिम सांस ली 14 जुलाई ,2013 को 
मैं चूक गई 
किसी अपने को ना भेज पाई तार 
जो हो जाती समय के साथ इतिहास 
फिर चाहे कोई उडाता मेरा परिहास 
आज की तकनीक के आगे 
हमने छोड़ा है पीछे उस प्यारे तार को 
कभी सांसें आती थीं जिससे दूर संचार को 
अब भावी पीढ़ी के लिए 
नहीं होगी इसकी अहमियत ख़ास 
क्योंकि उनको नहीं है इससे कोई आस 
अब बारहवीं के सिलेबस में इसे नहीं सिखाया जायेगा 
अब ईमेल ,मैसेंजर ,व्हाट्स एप्प समझाया जाएगा 
क्योंकि तकनीक ने अब कर लिया है बहुत विस्तार 
अब दूर संचार में बे तार हो गया है तार 

अलविदा तार! अलविदा तार! अलविदा तार ! 




Post A Comment Using..

No comments :