शरदचन्द्र बरसा रहा ,अमृत चाँदनी आज
धवल केश लहरा रही, धरा पहनकर ताज ।।
शरदपूर्णिमा रात है, जैसे खिली कपास
सागर चंदा खेलते ,आज डांडिया रास ।।
रासोत्सव ले आ गया,शरद चाँदनी रात
साजन से सजनी मिली,पाकर यह सौगात ।।
शरदोत्सव ले आ गया ,आश्विन कार्तिक मास
शरद पूर्णिमा रात में ,मन छाया उल्लास ।।
शरदपूर्णिमा दे गई ,आकर यह सन्देश
शारदीय ऋतु आ गई ,धर बसंत का वेश ।।
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