हमराही

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Tuesday, June 26, 2012

''आम आदमी की व्यथा''

                                    

कभी राशन की लाइन में ,कभी सब्जी की दुकान में,
रोज ही मरता हूँ मैं, मुझको ना दफ़नाओ यार!

सरकार कहती है ३६ रुपये काफ़ी हैं जीने के लिए,
दो वक्त की रोटी कैसे आए,यह इनको समझाओ यार!

एक दिन ऑफीस चलाने का इनका खर्चा जरा पूछो,
कैसे भरता है बच्चों का पेट,इनको भी बताओ यार!

घर का खाना जुटा ना पाउँ,तो मैं क्यों चड़ू फाँसी 
इन सबको लटकाओ यार ,अब मंहगाई दूर हटाओ यार!
                                             
सड़कें बेची, खेलें बेची, प्याज बेचा,बेचा सारा देश,
फिर से अपने देश को,घर के गद्दारों से बचाओ यार!

सोने के भंडार मिलें, पर ग़रीब और भी ग़रीब हो गया,
अमीर का धन कैसे बढ़ता जाए,यह मुझको समझाओ यार!

अपने देश का पैसा, सोना वापिस देश में लाओ यार,
फिर से मेरे प्यारे देश को, सोने की चिड़िया बनाओ यार!!
............................................
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7 comments :

  1. बहुत बढ़िया....
    विचारणीय रचना...........

    अनु

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    Replies
    1. अनु शुक्रिया,समय देने के लिए

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  2. Sarita.......je ek adbhut rachnaa sachaee ka bayan kartee hue aur yeh pankti.....इन सबको लटकाओ यार ,अब मंहगाई दूर हटाओ यार.......badhai s rachna ke liye

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  3. विवेक जी शुक्रिया मार्गदर्शन के लिए,अपना बहुमूल्य समय देते रहें

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  4. सरकार कहती है ३६ रुपये काफ़ी हैं जीने के लिए,
    दो वक्त की रोटी कैसे आए,यह इनको समझाओ यार!

    बहुत ही तीखा व्यंग्य !
    सुंदर रचना !

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