हमराही

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Wednesday, November 6, 2013

कौन हो तुम ?

आज फिर 
तुम्हारी बेरूख़ी ने 
मुझे यूँ रुला दिया|
एक चाहत 
जो जगी मिलने की 
उसे भी मिटा दिया|
मिलने से पहले ही
बिछूड़ने का डर 
क्यों सताए?
काश कभी 
आँख खुलते ही 
वो सामने आ जाए|
रोक कर 
उस पल को 
कभी न जाने देना है|
लिपटकर उससे 
अपना आँचल 
भिगो लेना है|
तुम्हे 
कुछ हो जाए 
तो चैन नही मैं पाती हूँ|
कौन हो तुम ?
अनजान मुसाफिर 
जिसे सोच के मैं घबराती हूँ||
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