आज फिर
तुम्हारी बेरूख़ी ने
मुझे यूँ रुला दिया|
एक चाहत
जो जगी मिलने की
उसे भी मिटा दिया|
मिलने से पहले ही
बिछूड़ने का डर
क्यों सताए?
काश कभी
आँख खुलते ही
वो सामने आ जाए|
रोक कर
उस पल को
कभी न जाने देना है|
लिपटकर उससे
अपना आँचल
भिगो लेना है|
तुम्हे
कुछ हो जाए
तो चैन नही मैं पाती हूँ|
कौन हो तुम ?
अनजान मुसाफिर
जिसे सोच के मैं घबराती हूँ||